National Breaking-बाल अधिकार हेल्पलाइन 1098 को पुलिस हेल्पलाइन 112 से जोड़ने विषय पर आयोजित हुआ 121 वां राष्ट्रीय आरटीआई वेबिनार।

रीवा मध्य प्रदेश। बाल अधिकार हेल्पलाइन 1098 और पुलिस हेल्पलाइन 112 को जोड़ने संबंधी सरकार की कवायद को लेकर बाल अधिकार और सामाजिक मुद्दों से जुड़े हुए विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी। कार्यक्रम में आरटीआई रिवॉल्यूशनरी ग्रुप और नेशनल फेडरेशन आफ सोसाइटीज फॉर फ़ास्ट जस्टिस के तत्वाधान में आयोजित 121 वें राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार में मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की गई। कार्यक्रम में जम्मू कश्मीर से बच्चों के अधिकार के लिए कार्य करने वाले और पद्मश्री से सम्मानित जावेद अहमद तक ने बताया कि उनके द्वारा काफी समय से बाल अधिकार को लेकर कार्य किए जा रहे हैं। लेकिन सरकार के द्वारा अभी हाल ही में जो निर्णय लिया गया है जिसमें बाल अधिकार हेल्पलाइन 1098 और पुलिस हेल्पलाइन 112 को जोड़ने संबंधी प्रस्ताव लाया गया है वह दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे बालकों के अधिकार का हनन होगा। वही उड़ीसा एवं अन्य राज्यों से पधारे अन्य चाइल्ड राइट्स से जुड़े हुए कार्यकर्ताओं डॉ राज सिंह आदि ने भी अपनी चिंता जाहिर की और बताया कि पुलिस के पास पहले से ही काफी काम रहते हैं और यदि चाइल्ड राइट्स हेल्पलाइन 1098 को ही पुलिस हेल्पलाइन 112 से जोड़ दिया गया तो ऐसे में कार्य का बोझ बढ़ जाएगा और बच्चों के साथ न्याय नहीं हो पाएगा।

चाइल्ड राइट्स वायलेशन से संबंधित जानकारी 48 घंटे में प्राप्त किए जाने का प्रावधान – पूर्व सूचना आयुक्त आत्मदीप।

कार्यक्रम में चाइल्ड राइट्स और बाल अधिकारों से संबंधित मुद्दों में सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाकर शीघ्र अतिशीघ्र जानकारी कैसे प्राप्त की जाए इस विषय पर मध्य प्रदेश के पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने बताया कि सूचना के अधिकार कानून में धारा 7(1) में जो जानकारी कार्यालय में मौजूद है उसे जल्द से जल्द उपलब्ध करवाए जाने का भी प्रावधान है। उन्होंने बताया कि इसी श्रृंखला में यदि जानकारी जीवन और स्वतंत्रता से जुड़ी हुई है उन स्थितियों में 48 घंटे के भीतर भी प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि यदि जानकारी 48 घंटे के भीतर नहीं मिलती है तो संबंधित प्रथम अपीलीय अधिकारी एवं राज्य सूचना आयोग में जल्द से जल्द अपील किया जा कर जानकारी दिए जाने की और न्याय संगत कार्यवाही की मांग की जा सकती है। उन्होंने बताया कि बच्चों से संबंधित उत्पीड़न और उनके शोषण को जीवन और स्वतंत्रता से जोड़ा जा सकता है और इन स्थितियों में जानकारी जल्दी देने का प्रावधान होता है। उपस्थित चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट के द्वारा इस विषय पर शिक्षा के कानून एवं बाल अधिकार से संबंधित विभिन्न प्रश्न किए गए जिनका समाधान उपस्थित विशेषज्ञों और स्वयं पूर्व राज्य सूचना आयोग के द्वारा किया गया।

चाइल्ड राइट्स हेल्प लाइन 1098 को पुलिस हेल्पलाइन 112 के साथ जोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण – सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल।

इस बीच कार्यक्रम में नेशनल फेडरेशन आफ सोसाइटीज फॉर फास्ट जस्टिस के संयोजक सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल ने भी चाइल्ड राइट्स हेल्पलाइन 1098 और पुलिस हेल्पलाइन 112 को आपस में जोड़ने पर चिंता जाहिर की और कहा कि जहां सरकार के पास अन्य कार्यों के लिए लाखों हजारों करोड़ रुपए का बजट आवंटन कर दिया जाता है वही मात्र 100 करोड का बजट आवंटन यदि चाइल्ड राइट्स हेल्प लाइन 1098 के लिए किया जाता है तो सरकार को क्या दिक्कत है? क्या सरकार पर इतना अधिक दबाव और भार बढ़ रहा है जिसकी वजह से वह चाइल्ड राइट्स हेल्पलाइन 1098 और पुलिस हेल्पलाइन 112 को आपस में जोड़ रही है? उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे बालकों के अधिकारों का हनन होगा और जो न्याय आज 1098 पर कॉल करने के बाद बच्चों को तत्काल मिल जाया करता है उसमें काफी कमी आएगी और क्योंकि पुलिस के पास पहले से ही विभिन्न प्रकार के अधिभार हैं इसलिए उनको सभी मामलों को एक साथ हैंडल करने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पुलिस का रवैया वैसे भी समाज के प्रति बहुत अच्छा नहीं है और अंग्रेजी जमाने की पुलिस के आगे बच्चों के लिए खुलकर पुलिस के समक्ष बात रखने में दिक्कत होगी और वह दबाव महसूस करेंगे। जहां बच्चों के समक्ष बिना वर्दी के पुलिस जाकर पूछताछ करे ऐसे प्रावधान हैं वहीं यदि पुलिस का नाम ही आ जाता है उन्हें बालक किसी भी तरह से पुलिस हेल्पलाइन का इस्तेमाल नहीं करेंगे और इससे बच्चों के प्रति अपराध में वृद्धि हो सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार को इस विषय पर विचार करना चाहिए और हम सब मिलकर विभिन्न स्तर से इस बात का विरोध कर रहे हैं।

कार्यक्रम में राजस्थान से आरटीआई एक्टिविस्ट सुरेंद्र जैन ने भी अपने विचार रखे और बताया कि कैसे आरटीआई कानून को मजबूत करने के लिए वह निरंतर कार्य कर रहे हैं और हाई कोर्ट में जनहित याचिकाएं भी दायर कर रहे हैं।

इंदौर के एक आरटीआई आवेदक संजय मिश्रा पर रासुका लगाकर कानून के दुरुपयोग पर चर्चा।

कार्यक्रम में इंदौर से सम्मिलित हुए पत्रकार और आरटीआई आवेदक ज्ञानेंद्र कुमार पटेल ने उपस्थित विशेषज्ञों से पूछा कि अभी हाल ही में इंदौर के किसी आरटीआई आवेदक संजय मिश्रा के ऊपर वहां के जिला कलेक्टर मनीष सिंह के द्वारा जो राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया है क्या वह उचित है? इस विषय पर उपस्थित विशेषज्ञ और पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का लगाया जाना विशेष परिस्थितियों में होता है जब किसी व्यक्ति के द्वारा ऐसा कार्य किया जाए जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो जाए ऐसी स्थितियों में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का प्रावधान है। उन्होंने कहा की आरटीआई लगाने से राष्ट्रीय सुरक्षा को कैसे खतरा हो सकता है यह अपने-अपने चिंतनीय विषय है। कुछ लोगों ने कहा कि संजय मिश्रा के ऊपर पहले से लगभग 6 मामले दर्ज हैं जिसकी वजह से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया गया है लेकिन प्रश्न यह भी था कि इस प्रकार दर्जनों प्रकरण देश के विभिन्न कोनों में अपराधियों के ऊपर लगे हुए हैं लेकिन क्या सब के ऊपर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया गया है? इस विषय पर सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं ने चिंता जाहिर की और कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून देश में विशेष परिस्थितियों के लिए लाया गया है लेकिन ऊपर लेवल पर बैठे हुए अधिकारी अपनी कमी और निकम्मेपन को दबाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का भी दुरुपयोग करने लगे हैं। आरटीआई कानून का दुरुपयोग हो सकता है और कुछ जगहों पर किया जा रहा है इसमें कोई शक की बात नहीं है लेकिन सवाल यह था कि आरटीआई कानून के दुरुपयोग करने पर क्या राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया जाए यह अपने आप में विचारणीय है। वहीं उपस्थित कार्यकर्ताओं ने कहा कि इस विषय पर हाईकोर्ट में पिटीशन दायर की जानी चाहिए और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को हटाए जाने के लिए मांग की जानी चाहिए।

ट्विटर हैंडल पर इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने अधिक आरटीआई आवेदन को एक्सटॉर्शन बताया।

गौरतलब है कि इसके पहले सार्वजनिक तौर पर ट्विटर हैंडल में इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह के द्वारा संजय मिश्रा के विरुद्ध ट्वीट करते हुए कहा गया था कि संजय मिश्रा ब्लैकमेलिंग कर रहा है और काफी आरटीआई लगा रहा है अतः यह एक्सटॉर्शन की श्रेणी पर आता है। इस बात से भी स्पष्ट था की अधिक आरटीआई लगाने के कारण ही कहीं न कहीं अधिकारी परेशान थे जिसकी वजह से उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का दुरुपयोग करते हुए अपने बचाव में ऐसा किया। कुछ आरटीआई कार्यकर्ताओं ने इस बात पर भी चिंता जाहिर की कइसका गलत प्रभाव दूसरे आरटीआई आवेदकों पर भी पड़ेगा और लोगों में भय व्याप्त हो जाएगा कि आरटीआई लगाने से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में भी फर्जी तरीके से फंसाया जा सकता है जिससे न केवल आरटीआई कानून की साख में बट्टा लगेगा बल्कि देश में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए लाया गया महत्वपूर्ण कानून अपनी अंतिम सांस लेने लगेगा।
अतः इस विषय पर भी सबको मिलकर कार्य किए जाने की जरूरत है।

कार्यक्रम का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के द्वारा किया गया जबकि सहयोगियों में मध्य प्रदेश जबलपुर से अधिवक्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट नित्यानंद मिश्रा, रीवा से पत्रिका समूह के वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह एवं छत्तीसगढ़ से देवेंद्र अग्रवाल सहित आरटीआई रिवॉल्यूशनरी ग्रुप के आईटी सेल से पवन दुबे सम्मिलित रहे।

 

शिवानंद द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता जिला रीवा मध्य प्रदेश मोबाइल नंबर 9589152587.