आवेदकों का तर्क की जानकारी के पीछे कारण बताना उचित नही, वहीं कोर्ट के आदेश की हुई समीक्षा और कहा कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नही, कोर्ट का हर आदेश विशिश्तिपूर्ण ,पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा क्या हमें बोलने के लिए भी कारण बताना होगा?
रीवा। आरटीआई कानून को आमजन तक पहुंचाने के लिए लॉकडाउन के दरमियान प्रारंभ हुआ सूचना का अधिकार का राष्ट्रीय स्तर का वेबिनार अपने 91 वें पड़ाव पर पहुंचा. इस बीच मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह के द्वारा कार्यक्रम की अध्यक्षता की गई जबकि कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त अजय कुमार उप्रेती, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप एवं माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु सम्मिलित रहे।
कार्यक्रम में इस बात पर चर्चा हुई की क्या सूचना प्राप्ति के लिए लोक सूचना अधिकारियों को आवेदक के द्वारा कोई कारण बताया जाए? उपस्थित आवेदकों ने तो तर्क दिए कि आरटीआई कानून में स्पष्ट उल्लेख है कि किसी भी सूचना की प्राप्ति के लिए कोई भी कारण नहीं बताया जाना चाहिए जबकि उपस्थित सूचना आयुक्तों और अन्य एक्सपर्ट ने बताया कि अभी हाल ही में श्रीमती प्रतिभा सिंह नामक जज का एक एक आदेश आया जिसमें यह कहा गया की निजी जानकारी के लिए कारण बताएं जाना आवश्यक है। इस बात पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा कि क्या हमें अब बोलने के लिए भी कारण बताना पड़ेगा? श्री गांधी ने कहा की सूचना चाहे व्यापक जनहित की हो अथवा किसी के अपने इंटरेस्ट की हो उसके लिए कारण बिल्कुल नहीं बताया जाना चाहिए जबकि उन्होंने कहा कि यदि कोर्ट के इस सिद्धांत को लागू करेंगे तो आने वाले समय में हर किसी आरटीआई के जवाब के पीछे कोई कारण बताया जाना निर्धारित किया जाएगा और ऐसे में कोई भी जानकारी आवेदकों को नहीं दी जाएगी क्योंकि लोक सूचना अधिकारी तो बस मात्र इसी का बहाना बनाएंगे कि आप कारण बताइए तब जानकारी पाइए।
इस बीच उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त अजय कुमार उप्रेती ने कहा कि हालांकि कोर्ट के आदेश अपने स्थान पर होते हैं और किसी मामले विशेष पर आधारित होते हैं और यदि वह परिस्थितियां आरटीआई आवेदनों में लागू न हो तो यह आवश्यक नहीं की हर एक कोर्ट के आदेश को मानकर आंख मूंदकर उसी प्रकार से उसका निराकरण किया जाए। प्रकरण के अनुसार ही निर्णय दिए जाते हैं. उन्होंने इसी प्रकार अन्य तथ्यों का हवाला देते हुए मामले पर अपने विचार रखे और साथ ही विभिन्न राज्यों और खासतौर पर उत्तर प्रदेश से उनके मंडल से संबंधित आवेदकों के प्रश्नों का बखूबी जवाब दिया और कहा कि वह हमसे संपर्क कर सीधे अपने मामलों के विषय में अवगत करा सकते हैं और उनके मामलों का जल्द से जल्द निराकरण किया जाएगा।
कार्यक्रम में विशेष तौर पर पधारे पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप और माहिती अधिकार मंच के संयोजक भास्कर प्रभु ने भी उपस्थित आवेदकों के जिज्ञासा और प्रश्नों के जवाब दिए। आत्मदीप ने बताया कि उनके पास एक ऐसा आरटीआई का मामला आया था जिसमें एक सरकारी कर्मचारी का पेमेंट रोक दिया गया था और जब कि आरटीआई कानून में किसी को मुआवजा दिलवाने अथवा पेमेंट दिलवाने का कोई प्रावधान नहीं है फिर भी मानवीय स्तर पर लकीर का फकीर न होते हुए उन्होंने उस मामले पर संज्ञान लेते हुए सरकारी कर्मचारी के 20 लाख रुपए की रुकी हुई पेमेंट भी दिलवाया था। इसी प्रकार भास्कर प्रभु ने भी इन मुद्दों पर अपने विचार रखें और कहा कि आज धारा 4 के प्रावधान लागू न होने की वजह से इतने अधिक आरटीआई लग रहे हैं. धारा 4 बहुत महत्वपूर्ण है और इसका पालन यदि हो जाए तो आरटीआई लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। कार्यक्रम का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के द्वारा किया गया जबकि सहयोगियों में छत्तीसगढ़ से देवेंद्र अग्रवाल, जबलपुर हाईकोर्ट से अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा और वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह सम्मिलित रहे। देश के विभिन्न राज्यों से सैकड़ों प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया और अपनी अपनी जिज्ञासा और प्रश्नों का जवाब पाया।
शिवानन्द दिर्वेदी. सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता जिला रीवा मध्य प्रदेश मोबाइल नंबर 9589152587।