उज्जैन । उज्जैन की घट्टिया तहसील के ग्राम रामपुरा निवासी धीरशांत त्रिपाठी पेशे से सिविल इंजीनियर थे, लेकिन काफी समय से वे कुछ अलग करना चाह रहे थे। बचपन से उनका रुझान खेती की तरफ विशेष रूप से था। वे जैविक खेती करना चाह रहे थे। गांव में उनके पास कुछ बीघा जमीन थी। उन्होंने इस हेतु कृषि और उद्यानिकी विभाग से सम्पर्क किया। उद्यानिकी और कृषि विभाग के द्वारा उन्हें जैविक खेती करने के लिये उचित मार्गदर्शन दिया गया। इसके परिणामस्वरूप धीरशांत ने इंजीनियरिंग छोड़ जैविक खेती को अपनाया। वर्तमान में धीरशांत 16 बीघा में जैविक पद्धति से फलों का उत्पादन कर रहे हैं। उनके बगीचे में आठ से दस प्रकार के फलों के पौधे हैं।
जैविक पद्धति से उगाये गये फल बहुत स्वादिष्ट होते हैं। धीरशांत को लोगों से काफी अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। उन्होंने बताया कि उनके पास आठ देशी नस्ल की गीर गाय हैं। फलों के पौधों से निकले अवशिष्ट से वे गायों के लिये आहार तैयार करते हैं तथा गायों के अवशिष्ट जैसे गोबर, गोमूत्र से वे प्राकृतिक रूप से खाद तैयार करते हैं। इस प्रकार एक चक्र का निर्माण होता है। धीरशांत गीर गायों के दूध एवं अन्य उत्पाद जैसे दही, घी, पनीर, छाछ आदि का भी विक्रय कर रहे हैं। उनके व्यवसाय में धीरे-धीरे अच्छा विकास हो रहा है। पिछले तीन से चार साल में उनका डेयरी व्यवसाय अच्छी गति से संचालित हो रहा है। धीरशांत अन्य किसानों को भी जैविक खेती की ओर रुझान करने के लिये कहते हैं। उनका कहना है कि जैविक उत्पादों को अपनाकर हम प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। उद्यानिकी और कृषि विभाग की ओर से दिये गये मार्गदर्शन और आवश्यक सहयोग के लिये धीरशांत आभार व्यक्त करते हैं। उन्होंने बताया कि उक्त विभागों के द्वारा उन्हें जैविक खेती को अपनाने में काफी सहयोग प्रदाय किया गया।