कोर्ट के आदेशों से कैसे पारदर्शिता को खतरा बढ़ा विषय पर आयोजित हुआ 90 वां आरटीआई वेबिनार।

रीवा।सूचना के अधिकार कानून को जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर वेबिनार का आयोजन किया जा रहा है। आरटीआई कानून के क्रियान्वयन से लेकर अब तक कोर्ट के विभिन्न आदेशों से कैसे आरटीआई कानून को खतरा बढ़ा है और किस प्रकार छोटी से छोटी जानकारी भी आवेदकों को धारा 8, 9 और 11 का हवाला देकर छुपाई जा रही है इस बात को लेकर 90 वां नेशनल आरटीआई वेबीनार का आयोजन किया गया जिसमें कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने की जबकि विशिष्ट अतिथि के तौर पर हाई कोर्ट इलाहाबाद के रिटायर्ड जस्टिस राजीव लोचन मेहरोत्रा, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त अजय उपरेती एवं माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु सम्मिलित हुए।

कार्यक्रम में शुरुआत में मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि कोई भी कोर्ट का आदेश एक विशेष परिस्थिति को ध्यान में रखकर तो दिया जाता है चाहे वह गिरीश रामचंद्र देशपांडे हो या आर राजगोपाल सभी आदेश उस कांटेक्ट पर तो सही बैठते हैं लेकिन आवश्यक नहीं है कि सूचना आयोग के समस्त आदेशों पर इनका प्रभाव रहेगा ज्यादातर छूट को लेकर जो भी ऐसे आदेश दिए गए हैं उनमें एक ऐसा क्लोज होता है जिसमें पब्लिक इंपॉर्टेंस का जनहित साबित करना होता है। सवाल यह है यदि जनहित है तो जानकारी अवश्य दी जाएगी साथ में जो जानकारी धारा 8(1)(जे) में विधानसभा एवं लोकसभा को दी जानी चाहिए वह जानकारी आवेदक को जरूर दी जानी चाहिए इसलिए सूचना आयुक्त अपने स्तर पर निर्णय ले सकते हैं कि वह इस आदेश को कहां तक मान रहे हैं। धारा 4 के विषय में राहुल सिंह ने बताया कि मध्यप्रदेश में हम धारा 4 के 4(1)(बी) के 17 पॉइंट मैनुअल को लागू करवाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं और इस विषय में हमने अभी हाल ही में आवेदक शिवानंद द्विवेदी के आरटीआई आवेदन पर रीवा सहित पूरे मध्यप्रदेश के लिए आदेश लागू किया है जिस पर जानकारी को सार्वजनिक किए जाने का प्रावधान है।

कार्यक्रम में इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस राजीव लोचन मेहरोत्रा ने बताया कि कानून का विश्लेषण अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग होता है। कोई भी आदेश अपने आप में स्पीकिंग ऑर्डर होना चाहिए और विशेष तौर पर यदि जानकारी न दिए जाने का प्रावधान है तो उसमें कारण अवश्य बताया जाना चाहिए कि किन कारणों के बस में होकर जानकारी नहीं दी जा रही है और जहां तक सवाल जानकारी दिए जाने का है तो उसमें तो सीधे भी आदेश दिए जा सकते हैं। जस्टिस राजीव लोचन मेहरोत्रा ने बताया कि आरटीआई कानून बहुत सख्त कानून है और इसकी वजह से देश में पारदर्शिता आई है। उन्होंने कहा कि जब यह कानून लागू किया गया तो वर्ष 2005 के आसपास इसका काफी भय था और लोकसेवक घबराते थे लेकिन आज यह कहीं न कहीं काफी कमजोर हुआ है इस विषय पर सभी को ध्यान देने की आवश्यकता है और आरटीआई कानून मजबूत बनेगा, पारदर्शिता आएगी तो जवाबदेही बढ़ेगी इससे देश में भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी और व्यवस्थाएं सुदृढ़ होगी।

पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने अपने स्लाइड शो प्रेजेंटेशन के माध्यम से इस विषय पर विस्तार से चर्चा की और बताया कि कोर्ट ने आरटीआई कानून को कमजोर किया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट का गिरीश रामचंद्र देशपांडे आदेश महत्वपूर्ण है जिसमें कई सारे बिंदु जैसे एसीआर सर्विस बुक सर्टिफिकेट इनकम टैक्स जैसी जानकारियों को व्यक्तिगत बताते हुए एक तरह से इन्हें बैन लगा दिया गया जिसका आधार बनाकर आज हर एक लोक सूचना अधिकारी अधिक से अधिक जानकारी आवेदकों को न मिले इस पर कार्य कर रहा है जो काफी दुर्भाग्यपूर्ण है और आरटीआई कानून को कमजोर करता है। शैलेश गांधी ने कहा कि इस विषय पर सभी लोगों को मिलकर काम करना पड़ेगा और इसे एक पब्लिक डिबेट का इशू बनाना पड़ेगा और जब तक यह बात सुप्रीम कोर्ट स्तर पर नहीं पहुंच जाती और एक पब्लिक ओपिनियन नहीं बनता तो आरटीआई कानून के लिए एक बड़ा खतरा बना रहेगा।

कार्यक्रम में भास्कर प्रभु एवं पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम में देश के विभिन्न कोनो से सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई एक्टिविस्ट और आरटीआई उपयोगकर्ता जुड़े और कार्यक्रम का लाभ प्राप्त किया।

कार्यक्रम का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के द्वारा किया गया जबकि सहयोगी के तौर पर अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, देवेंद्र अग्रवाल आदि रहे।

शिवानंद द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता जिला रीवा मध्य प्रदेश मोबाइल नंबर 9589152587।