National Breaking.डाटा प्रोटक्शन बिल के माध्यम से आरटीआई कानून के संशोधन को लेकर जानेमाने सूचना आयुक्तों ने आयोजित की वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस
,साझा प्रस्ताव पर हुई चर्चा जिसे अब भेजा जाएगा सरकार को, डाटा प्रोटक्शन बिल से ऐसे बिंदुओं को हटाए जाने की मांग जिससे आरटीआई कानून होगा प्रभावित।
रीवा मध्य प्रदेश।
प्रस्तावित डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 के मसौदे में आरटीआई कानून 2005 की धारा 8(1)(जे) को हटाए जाने एवं साथ में डाटा प्रोटक्शन बिल के सर्वोपरि प्रभाव रखने के मामले को लेकर देशभर के वर्तमान और पूर्व सूचना आयुक्तों ने सरकार के विरुद्ध अपना मोर्चा खोल दिया है।
ऑनलाइन और वर्चुअल माध्यम से 13 दिसंबर 2022 को शाम 5:00 से 6:00 के बीच में आयोजित की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में महाराष्ट्र के जानेमाने और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त एवं चीफ सेक्रेटरी रत्नाकर यशवंत गायकवाड जाने-माने आईपीएस और पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त यशोवर्धन आजाद पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त और आईआईटी मुंबई के एलुमनाई शैलेश गांधी जाने-माने पत्रकार एवं वर्तमान मध्य प्रदेश के वर्तमान राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह एवं जाने-माने पत्रकार सामाजिक चिंतक एवं मध्य प्रदेश के पूर्व सूचना आयुक्त आत्मदीप के द्वारा वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में देशभर के पत्रकारगण, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट जुड़े। कार्यक्रम का संयोजन संयुक्त रूप से पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी एवं सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के द्वारा किया गया।
डाटा प्रोटक्शन बिल फीडबैक की समयावधि बढ़ाई जाए और इसके प्रचार प्रसार के साधनों में इजाफा किया जाए।
कार्यक्रम में डाटा प्रोटक्शन बिल के कई प्रावधानों को लेकर पूर्व और वर्तमान सूचना आयुक्तों ने चिंता जाहिर की और आपत्ति भी की। डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 के वर्तमान मसौदे में धारा 2, धारा 29 और धारा 30 में जो प्रावधान रखे गए हैं उसे आरटीआई कानून पर खतरा माना गया है। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बताया गया कि धारा 2 की उपधारा 12, 13 एवं 14 में पर्सनल डाटा की जो परिभाषा बताई गई है उसमें न केवल व्यक्ति की जानकारी बल्कि पूरे राज्य, कंपनी अथवा किसी संस्था की भी जानकारी सम्मिलित है जबकि धारा 29(2) में डाटा प्रोटक्शन बिल को अब तक के बनाए गए समस्त कानूनों में सर्वोपरि बताया गया है। इसी प्रकार धारा 30(2) में आरटीआई कानून की धारा 8(1)(जे) पूरी तरह से हटा दिया गया है। इस पर उपस्थित सूचना आयुक्तों ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यदि यही स्थिति रही तो आने वाले समय में आम जनमानस को कोई भी जानकारी नहीं मिलेगी। अब तक जो जानकारी संसद और विधायिका को प्रदान की जाती थी वह जानकारी आम नागरिक को भी प्राप्त करने का हक था लेकिन डाटा प्रोटक्शन बिल यदि अपने वर्तमान स्वरूप में पारित हो जाता है तो अब कोई भी जानकारी आम नागरिक को नहीं मिलेगी क्योंकि धारा 8(1)(जे) का प्रावधान ही पूरी तरह से हटाया जा रहा है।
सरकार द्वारा किया जा रहा पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़ा आघात।
उपस्थित पूर्व एवं वर्तमान सूचना आयुक्त ने वर्तमान प्रस्तावित डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 पर कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि यदि यह कानून वर्तमान स्वरूप में पारित हो जाता है तो इससे पारदर्शिता और जवाबदेही पर गहरा आघात लगेगा। सूचना आयुक्तों ने देश के सभी नागरिकों से इसका विरोध किए जाने की अपील की है और कहा है कि डाटा प्रोटक्शन बिल आवश्यक है लेकिन इस कानून के वह प्रावधान निश्चित रूप से हटाए जाने चाहिए जिससे आरटीआई कानून को खतरा बढ़ गया है। सूचना आयुक्तों ने कहा कि आरटीआई कानून को एक सभ्य और स्वच्छ लोकतंत्र में मजबूत किया जाना चाहिए क्योंकि एक स्वस्थ और स्वच्छ लोकतंत्र की परिभाषा में पारदर्शिता और जवाबदेही का स्थान सर्वोपरि होता है। परंतु जिस प्रकार किसी न किसी स्वरूप में आए दिन आरटीआई कानून को संशोधित कर कमजोर किया जा रहा है इससे लोकतंत्र की मूल भावना और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 को गहरा आघात लगा है।
मीडिया में क्या छपेगा क्या नहीं इस पर भी लगेगी पाबंदी, यदि जानकारी व्यक्तिगत निकली तो बड़ी कार्यवाही का डर।
वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पत्रकारिता से जुड़े हुए कई लोगों ने प्रश्न खड़े किए कि क्या डाटा प्रोटक्शन बिल अपने वर्तमान मसौदे में पारित होगा तो ऐसे में मीडिया में क्या छपना है और क्या नहीं इस पर भी पाबंदी लगेगी? इस बात का जवाब देते हुए पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने चिंता जाहिर की और कहा कि जिस प्रकार से पर्सनल डाटा की परिभाषा डाटा प्रोटक्शन बिल में बताई गई है उससे साफ जाहिर है कि बहुत सी ऐसी जानकारी जो विशेष सूत्रों से प्राप्त हो जाया करती थी और मीडिया में छाप दिया जाया करती थी यदि वह पर्सनल स्वभाव की निकली और डाटा प्रोटक्शन बिल में बताए गए प्रावधानों के अनुरूप यदि किसी की निजता का हनन होता है तो ऐसे में मीडिया संस्थानों पर भी कार्यवाही का खतरा बना हुआ है। इससे प्रेस की फ्रीडम फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन की जो परिभाषा है वह भी पूरी तारा से बदल जाएगी और मीडिया में छापने पर लगभग पाबंदी सी लग जाएगी।
डाटा प्रोटक्शन बिल में बदलाव को लेकर साझा प्रस्ताव किया गया पारित, भेजा जाएगा सरकार को
आयोजित वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उपस्थित वर्तमान एवं पूर्व सूचना आयुक्तों ने देशभर के जाने-माने पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आरटीआई एक्टिविस्टों के बीच अपनी बात रखते हुए एक साझा प्रस्ताव भी पारित किया है जिसमें मूल रूप से उपरोक्त बिंदुओं को जोड़ा जाकर सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा जिसमें इस कानून को अधिक से अधिक भाषाओं और समाचार पत्रों एवं अन्य माध्यमों से जनता के बीच जागरूकता के वास्ते प्रचारित करने के साथ-साथ समयावधि बढ़ाए जाने की माग की गई है।
चर्चा के दौरान कुछ नागरिकों का यह भी मानना था कि क्यों न इस कानून के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जाए जिसमें उक्त सभी बातों का उल्लेख करते हुए इस पर विचार करने और फिलहाल जब तक इसका समाधान नहीं निकलता तब तक रोके जाने की अपील भी की गई है।
शिवानंद द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता जिला रीवा मध्य प्रदेश मोबाइल नंबर 9589152587.